International Journal of Home Science
2018, VOL. 4 ISSUE 3, PART A
संतानोतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में संतति तथा जननी सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤
Author(s): निशा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract:
‘संतान’ जीवन की वो ख़à¥à¤¶à¥€ है जो हर कोई चाहता है उसके घर आà¤à¤—न में खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤ ले आà¤| ‘माà¤â€™ शबà¥à¤¦ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ हर सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिठअलग ही à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ होता है, जिसे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में बयाठनहीं किया जा सकता, परनà¥à¤¤à¥ किसी-किसी दंपति के जीवन में, उसके आà¤à¤—न में उस किलकारी की कमी रह जाती है जिसका वह सà¥à¤– चाहते है| मातृतà¥à¤µ नारी जीवन की चरम सारà¥à¤¥à¤•à¤¤à¤¾ है| मातृतà¥à¤µ शबà¥à¤¦ में समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ निहित है| इसी से नठजीवों की रचना होती है| फलतः जीव-सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का à¤à¥€ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ शाशà¥à¤µà¤¤ रूप से बना रहता है| इससे पृथà¥à¤µà¥€ पर जीवों का जीवन-चकà¥à¤° निरंतरता गà¥à¤°à¤¹à¤£ करता है| अपनी संतान को जनà¥à¤® देना सà¤à¥€ जीवों का सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• कारà¥à¤¯ है| मानव संतति तो समाज की आधारशिला है| पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• जीव-वरà¥à¤— में नर तथा मादा, दोनों रहते है| इनके शरीर में विशेष पà¥à¤°à¤œà¤¨à¤¨ अंग होते है जिनकी मदद से वे संसार में à¤à¤• नठजीव को लाते है|
How to cite this article:
निशा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. संतानोतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में संतति तथा जननी सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤. Int J Home Sci 2018;4(3):43-44.