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2021, VOL. 7 ISSUE 2, PART B

हिन्दू विवाह का स्वरूप, प्रकार और शुरूआत

Author(s): à¤ªà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ रानी, डॉ. पूजा त्यागी और डॉ. श्रीकांत शर्मा
Abstract:
विवाह एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है, जो विश्व के प्रत्येक भाग भिन्न-भिन्न रूपों में पाई जाती है। समाज में परिवार निर्माण करने एवं व्यक्ति को समाज में एक विशिष्ट सामाजिक प्रस्थिति की प्राप्ति हेतु विवाह को आधारभूत इकाई माना गया है। विश्व के प्रत्येक भाग में चाहे वह आधुनिक हो या प्राचीन, शहरी हो या ग्रामीण, सभ्य हो या जनजातीय, विवाह विभिन्न रूपों में पाया जाता है। हिन्दुओं में विवाह को सामान्यतः एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया जाता है। भारतीय समाज में प्रत्येक हिन्दू व्यक्ति के लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हिन्दुओं में पुरूषार्थ में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य माना गया है जिनकी पूर्ति विवाह द्वारा ही सम्भव है। हमारे समाज में अविवाहित व्यक्ति को अपवित्र माना गया है तथा उसे धार्मिक दृष्टि से अपूर्ण मानकर विभिन्न संस्करों में भाग लेने योग्य नहीं माना गया है। इस शोध पत्र में हिन्दुओं में विवाह के स्वरूप, विवाह के प्रकार और उसकी शुरूआत का अध्ययन किया गया है।
Pages: 75-77  |  943 Views  661 Downloads
How to cite this article:
प्रीति रानी, डॉ. पूजा त्यागी और डॉ. श्रीकांत शर्मा. हिन्दू विवाह का स्वरूप, प्रकार और शुरूआत. Int J Home Sci 2021;7(2):75-77.

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