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2024, VOL. 10 ISSUE 3, PART G

वस्त्र उद्योग में परिधान एवं साडीयाँ

Author(s): रेनु बोस
Abstract:
कपड़ें बुनाई की कला 2800-1800 ईसा पूर्व के दौरान मेसोपोटामियन सभ्यता से भारत आई थी। वैसे तो समकालीन सिंधु घाटी सभ्यता सूती कपड़ें से परिचित थे और वस्त्र के रूप में लंगोट जैसे कपड़ें का इस्तेमाल करते थे क्योंकि पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान कपास के कुछ अवशेष, सिंधु से प्राप्त हुये हैं लेकिन बुनाई की कला का साक्ष्य अब तक नहीं मिला है। महिलाओं के लिए एक साड़ी या साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में एक महिला परिधान है। लहंगा-चोली, स्कर्ट और ब्लाउज, सलवार-कमीज, अनारकली सूट, पत्तु पवदै आदि। पुरूष कपड,़ें धोती गम्छे य। भारतीय साड़ी आमतौर पर लाल या गुलाबी, एक पंरपरा है कि वापस पूर्व-आधुनिक भारत के इतिहास के लिए जाना जाता है। साड़ी आमतौर स्थानों में अलग अलग नामों से जाने जातें है। लुंगी, अचकनी/शेरवानी अँगरखा, शब्द अँगरखा संस्कृत शब्द जामा टोपी मैसूर पेटा राजस्थानी साफा गांधी टोपी आदि।
Pages: 485-488  |  43 Views  38 Downloads


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How to cite this article:
रेनु बोस. वस्त्र उद्योग में परिधान एवं साडीयाँ. Int J Home Sci 2024;10(3):485-488.

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