2024, VOL. 10 ISSUE 3, PART A
हिमालयी क्षेत्र के पांरपरिक औषधीय मसालों को प्रसार की आवश्यकता का अध्ययन
Author(s): Dr. Pooja Pokhariya
Abstract:
उत्तराखण्ड राज्य मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है, पहाड़ी, भाभर, और तराई, जिनमें से लगभग 86 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है। उत्तराखण्ड राज्य की भौगोलिक स्थिति और विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र के कारण अधिकांश भागों में निर्वाह खेती होती है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में 60-70 प्रतिशत भोजन का उत्पादन यहाँ के छोटे किसानों द्वारा किया जाता है। जो पारंपरिक खेती का पालन करते है। उत्तराखण्ड में स्वादिष्ट एंव विविधता युक्त खान-पान की समृ़़द्ध संस्कृति रही है। यहाँ के खेतों साग-सब्जियों, कृषि एंव जगलों से उत्पन्न खाघान्न, फल-फूल, दलहन, मसालों में स्वाद एंव पौष्टिकता की रसधारा बहती है। यह खाघान्न हमें खाने की तृप्ति के साथ-साथ सुख शान्ति और आरोग्यता भी प्रदान करते हैं। यहाँ भोजन की जड़ें प्राकृतिक बीज, मिटटी, पानी, हवा एंव विविधता से जुड़ीं है। पारम्परिक खेती शत प्रतिशत जैविक है। यहाँ के बाँज बुरांस के जंगलों से नौले व धाराओं के जल का स्वाद भी बहुत अलग होता है, इस पानी से जो भोजन पकाया जाता ह,ै वह स्वादिष्ट होता है। बाँज बुरांस के जंगलों से बहने वाली शुद्ध हवा में कुदरती फास्फोमिन भी मुफ्त रूप में मिलती है। पहाड़ों की महिलायें एक ही खाघान्नों के दर्जनों व्यंजन बना लेती हैं। प्रस्तुत लेख में ”हिमालयी क्षेत्र के पांरपरिक औषधीय मसालों को प्रसार की आवश्यकता“ का अध्ययन गया है। अध्ययन में देखा गया है कि उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे मसाले है जिन्हें प्रसार की आवश्यकता है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के आस-पास के लोगों को आज भी पांरपरिक मसालों के बारे में जानकारी नहीं है। आज हम आपको पर्वतीय क्षेत्र के कुछ स्वाष्दिष्ट मसालों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी मदद से हम अपने भोजन को स्वादिष्ट बना सकते हैं। जैसे जखिया, तिमूर, जम्बू, आदि मसालों से भोजन को स्वादिष्ट और स्वास्थ्य को आरोग्य बनाया जा सकता है।