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2022, VOL. 8 ISSUE 3, PART D

बदलती हुई पारिवारिक संरचना और बढ़ते वृद्धाश्रम

Author(s): à¤‰à¤°à¥à¤µà¤¶à¥€ कोइराला, डॉ. दिव्या रानी हंसदा
Abstract:
समाज को विकसित करने में परिवारों का बड़ा रोल होता है और इन परिवारों को विकसित करने में बुजुर्गों का अहम योगदान है। इसीलिए परिवार में बुजुर्गों की मौजूदगी बहुत जरूरी है। जैसा संयुक्त परिवारों में देखने को मिलता है। ऐसे परिवारों में बच्चों को आज भी अपने दादा दादी द्वारा संस्कार मिल रहे हैं जो उनके चरित्र निर्माण में बड़े सहायक साबित हो रहे हैं। इसका बड़ा फायदा ये भी है कि जब परिवार पर कोई भी बड़ी मुश्किल आती तो बड़े बुजुर्ग अपने सूझबूझ से परिवार को मुश्किल से बाहर निकालते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली अब धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है या विलुप्त होने के कगार पर है। संयुक्त परिवार प्रणाली के टूटने के कारण सबसे मुश्किल में वृद्ध लोग हैं। पश्चिम में ‘ओल्ड एज होम्स’ एक आम बात है, लेकिन अब कुछ वर्षों से बदलती परिस्थितियों में ‘ओल्ड एज होम’ भारत में भी एक आवश्यकता बन गए है। संयुक्त परिवार के टूटने के सिलसिले के साथ ही वृद्धजनों की मुसीबतें भी बढ़ रही है। इससे उम्र के आखिरी पड़ाव पर वे अपमान का ‘ददर्’ भरा जीवन जीने को अभिशप्त हैं। माता पिता विपरीत हालातों में भी पाल पोस कर बड़ा करते हैं, उन्हीं बच्चों में अभिभावकों के प्रति दिल में जगह कम होती जा रही हैं। बीमार बुजुर्ग आखिरी समय वृद्धाआश्रम में काटने को मजबूर हैं। तरक्की के लिए युवाओं द्वारा आधुनिक जीवनशैली अपनाने के कारण संयुक्त परिवार तेजी से बिखर रहे हैं। इससे घर के बड़े बूढ़े हासिये पर ढकेले जा रहे हैं।
Pages: 245-246  |  2562 Views  1130 Downloads


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How to cite this article:
उर्वशी कोइराला, डॉ. दिव्या रानी हंसदा. बदलती हुई पारिवारिक संरचना और बढ़ते वृद्धाश्रम. Int J Home Sci 2022;8(3):245-246.

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